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अँधेरे का दीपक




अँधेरे का दीपक

हरिवंशराय ’बच्चन’

प्रश्न

अँधेरे का दीपक’ कविता में बच्चन जी का आस्थावादी स्वर मुखरित हुआ है। उदाहरण द्‌वारा समझाइए।

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हरिवंशराय ’बच्चन’  आधुनिक हिन्दी कविता में आस्थावादी कवि हैं जिन्होंने जीवन संघर्ष से कभी हार नहीं मानी। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्‌वारा मानव पीड़ा और उसके दुख-दर्द को आवाज़ दी।
हरिवंशराय ’बच्चन’ ने इलाहाबाद विश्वविद्‌यालय से 1938 में अंग्रेज़ी में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण तथा उन्होंने कैम्ब्रेज विश्वविद्‌यालय, इंग्लैंड से पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की। बच्चन जी ने 13 वर्ष की अल्पायु से ही काव्य रचना आरम्भ कर दी थी। काव्य में उनकी लोकप्रियता "मधुशाला" के प्रकाशन के बाद हुई। "मधुशाला" में इन्होंने सभी जातियों और धर्मों की एकता की घोषणा की है, साथ ही सामाजिक विषमताओं पर करारा व्यंग्य किया है। "मधुशाला" की पंक्तियाँ हैं -
                                                             मुसलमान और हिन्दू दो हैं,
                                                            
एक मगर उनका प्याला,
                                                            
एक मगर उनका मदिरालय,
                                                            
एक मगर उनकी हाला,
                                                            
दोनों रहते एक न जब तक,
                                                            
मंदिर, मस्जिद में जाते ,
                                                            
बैर बढ़ाते मंदिर, मस्जिद,
                                                             
मेल कराती मधुशाला ।
1976 में इन्हें पद्‌म भूषण से सम्मानित किया गया। "दो चट्‌टानें" नामक रचना पर इन्हें साहित्य अकादमी से भी पुरस्कृत किया गया।
बच्चन जी की भाषा शुद्‌ध खड़ी बोली है। भाषा सहज, स्पष्ट और मार्मिक है। जीवन में गहरे से गहरे भाव की सहज अभिव्यक्ति उनकी काव्य भाषा की मुख्य विशेषता है।
इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं - मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, सतरंगिणी, यामिनी, बुद्‌ध और नाचघर आदि।

प्रकृति के सभी निर्जीव और सजीव नाशवान हैं। सृजन, चिन्तन और संहार प्रकृति का शाश्वत नियम है। प्रकृति के नियम अपरिवर्तनशील हैं। वे हमारे अनुसार संचालित नहीं होते बल्कि हमें उनके साथ समायोजन करना पड़ता है। कवि ने अँधेरे का दीपक’ कविता में आस्थावादी और आशावादी स्वर का संचार किया है। कवि ने मानव जीवन में सुख और दुख को रेखांकित करते हुए कहा है कि जब सुख के दिन नहीं रहे तो दुख के दिन भी नहीं रहेंगे। अत: मानव को दुख, पीड़ा, कष्ट, पराजय से निराश न होकर उसे स्वीकार करना चाहिए और उसके विरुद्‌ध संघर्ष करते हुए सुख की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
 कवि के शब्दों में -
                                         है अँधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मना है?
मानव अपनी अतुलनीय कल्पना से सुंदर कमनीय भवन रूपी मंदिर का निर्माण करता है। उसे अपनी भावनाओं से सजाता है। अपनी रुचि के अनुसार उसे सजाता-सँवारता है। उसमें प्रेम और अपनापन का रंग भरता है पर एक दिन प्रकृति का कहर टूटता है और वह आलीशान महल धराशायी हो जाता है। पर कवि निराशा के अँधकार में नहीं डूबना चाहता क्योंकि विध्वंस प्रकृति का नियम है। मनुष्य हर विनाश के बाद फिर से निर्माण करने की हिम्मत रखता है। कवि के शब्दों में -

ढह गया वह तो जुटाकर, ईंट, पत्थर, कंकड़ों को,
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है?

कवि कहते हैं कि जब आप अपने प्रिय साथी से बिछुड़ जाते हैं तब मन को बहुत पीड़ा होती है। उस अलगाव के दर्द को सह पाना बेहद मुश्किल होता है लेकिन मरने वाले के साथ मरा तो नहीं जाता। रिश्तों के खत्म हो जाने पर जीवन तो खत्म नहीं हो जाता। ऐसे समय में यदि मन दूसरा मीत खोजकर उससे अपना मन लगा ले, तो इसमें मनाही नहीं है। नीलम के बने गिलास में ,प्रथम उषा रश्मि के समान लाल मदिरा भरी है। मधुपात्र के टूट जाने पर उसका शोक मनाने से अच्छा है कि अपने दोनों हाथों को जोड़कर अंजलि का निमर्ल स्रोत बनाई जए और उसमें उस मदिरा को भरकर पी लिया जाए। कवि के शब्दों में -

वह अगर टूटा, मिलाकर हाथ दोनों की हथेली,
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है?

हरिवंशराय ’बच्चन’ की  मानवतावादी आस्‍था मनुष्‍य की स्‍वतंत्रता और अस्‍मिता को सर्वोपरि मानते हुए, समाज-कल्याण का निरंतर प्रयास करता है। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से मानव-जीवन में आशा का संचार किया है ताकि मानव-जीवन की पीड़ा को कम किया जा सके। हिन्दी के प्रख्यात कवि अज्ञेय ने लिखा है कि दुख सबको माँजता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन में बिना दुख के सुख की आवश्यकता को जाना ही नहीं जा सकता। जब व्यक्ति के जीवन में दुख, पीड़ा, मुश्किल, हताशा बढ़ती है तब उसके व्यक्तित्व का वास्तविक आँकलन किया जा सकता है।


 हमें सुख और दुख दोनों में ही समान भाव रखने चाहिए। दुख में मुस्कराने से दुख कम हो जाता है। जीना आसान हो जाता है। दुख के आगमन पर धैर्य बनाए रखना और जीवन में सुख की निरन्तर खोज करते रहना ही प्रस्तुत कविता का मूल उद्‍देश्य है जिसे कवि हरिवंशराय बच्चन ने सफलतापूर्वक अभिव्यक्त किया है।
 कवि की कविता का मूल विषय है - प्रेम। कवि ने अपने प्रियतम  वियोग के दुख को व्यापक मानवीय संवेदना से जोड़ दिया है। कवि का मानना है कि जीवन में दुख की एक बड़ी भूमिका है। दुख ही मनुष्य के जीवन में निखार लाता है। अत: हमें उससे घबराना नहीं चाहिए । कवि कहते हैं कि जिस प्रकार आँधी चलने से घर उजड़ जाते हैं इसी प्रकार कुछ ऐसी हवाएँ चली कि प्यार का बसा बसाया घर उजड़ गया। उस समय शोर मचाना या रोना कुछ भी काम नहीं देता। प्रकृति के विनाश के सामने मानव एकदम बेबस हो जाता है। कवि कहते हैं कि विध्वंस की शक्ति ने जिसे उजाड़ दिया उसे फिर से बसाना क्या मना है। कवि के शब्दों में -
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं, प्रकृति के जड़ नियम से,
पर किसी उजड़े हुए को, फिर बसाना कब मना है?

निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि प्रकृति में सृजन और संहार का नियम चलता रहता है। इन परिवर्तनों से बिना घबराए मुस्कराना कब मना है। जीवन की हर परिस्थिति में आस्थावान बने रहना मानव-सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है।


जाग तुझको दूर जाना

महादेवी वर्मा

प्रश्न

"जाग तुझको दूर जाना" गीत में कवयित्री ने देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए देशवासियों को किन व्यवधानों पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया है ? समझाकर लिखिए।

उत्तर
महादेवी वर्मा छायावाद की प्रमुख कवयित्री है जिन्होंने काव्य और गद्‌य दोनों क्षेत्र में अपनी प्रतिभा से प्रसिद्‌धि प्राप्त की है। महादेवी वर्मा के काव्य में रहस्यवाद का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। इनकी कविताओं में प्रेम, विरह-वेदना और करुणा की अभिव्यक्ति हुई है। इन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है।
महादेवी वर्मा की भाषा में संस्कृत के शब्दों का अधिक प्रयोग किया गया है जिसमें सहजता, कोमलता और मधुरता है।
प्रमुख रचनाएँ - नीहार, रश्मि, नीरजा, दीपशिखा, यामा (ज्ञानपीठ पुरस्कार) आदि इनके काव्य संग्रह हैं।
जाग तुझको दूर जाना कविता में देशभक्ति का स्वर है जिसके द्‌वारा कवयित्री ने देश की आज़ादी के लिए लड़ रहे देशवासियों को जागरण का संदेश देते हुए उन्हें सदैव सतर्क, सावधान रहने के लिए प्रेरित किया है। कवयित्री ने देशभक्तों को जागरण का संदेश दिया है ताकि वे आज़ादी के मार्ग में आने वाले व्यवधानों पर विजय प्राप्त कर सके और अपने देश को गुलामी की जंज़ीर से मुक्त करा पाने में सफल हो सके। कठिन से कठिन परिस्थितियाँ भी मार्ग में बाधक नहीं बन सकती हैं। आसमान में काले बादल  भर जाएँ,प्रलय आ जाए, तूफ़ान-झंझावत आ जाए, हिमालय में भी भूचाल आ जाए। चारों ओर भंयकर अंधकार ही क्यों न फैल जाए लेकिन इन कठिनाई भरे रास्तों पर तुम्हारे कदमों के निशान पड़ने चाहिए अर्थात कितनी भी बड़ी बाधा, अड़चन या कठिनाई आए पर तुम्हारी गति को रोक न सके। कवयित्री देशभक्तों को जागृत करते हुए कहती हैं कि मार्ग की बाधाओं से न डरकर उन्हें निरन्तर प्रयत्नशील रहना चाहिए।

आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
आज या विद्‌युत-शिखाओं में निठुर तूफ़ान बोले!
पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्‌न अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जान॥

मनुष्य का जीवन अनमोल है। हमें जीवन को व्यर्थ नहीं करना चाहिए। अपने जीवन के लक्ष्य को पहचानना और उसे प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहना ही जीवन का पुरुषार्थ है। जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मार्ग की बाधाओं को दूर करना भी व्यक्ति का कर्त्तव्य है। मानवीय रिश्ते-नाते, मोहमाया इसके बीच में बाधक न हों बल्कि साधक हों। भारत माँ को गुलामी से मुक्त कराना हमारा एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए। मोहमाया का आकर्षण हमें पथ से विचलित करता है। ओस की बूँदों से भीगे पुष्प बड़े आकर्षक लगते हैं, भौंरों की गुनगुनाहट हमारा ध्यान अपनी ओर खींचती है। कवयित्री देशवासियों को संबोधित करते हुए कहती हैं कि जब पूरा देश अन्याय, शोषण और गुलामी के बंधन से जकड़ा हुआ है और भयानक कष्ट झेल रहा हो तो क्या उस समय हमें क्षणिक भोग-विलास के बंधन में जकड़ना शोभा देता है।जिस प्रकार छाया का कोई अस्तित्व नहीं है, वह हमारे पी्छे चलती है उसी तरह मोहमाया भी क्षणिक है, उसे अपना बंधन नहीं बनाना चाहिए।

तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना।
जाग तुझको दूर जाना॥


कवयित्री कहती हैं कि भारतवासियों का हृदय वज्र के समान कठोर है। उसे किसी भी प्रकार कमज़ोर नहीं पड़ना चाहिए। जीवन सुधा का पान करने वाले भारतीय दो घूँट मदिरा पान कर बेहोश क्यों हो जाना चाहते हैं। हमारे अंदर जोश, उमंग और उत्साह रूपी आँधी आज़ादी रूपी लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक है लेकिन वह ही शांत होकर मलयाचल से आने वाली शीतल-सुगंधित वायु का तकिया बनाकर सो जाएगी तब हम भारतीय अपने लक्ष्य को कैसे पा सकेंगे। आँधी हमारी शक्ति का परिचायक है और  आलस्य हमारे लिए अभिशाप है। कवयित्री कहती हैं कि भारतीयों की आत्मा अमर है, अत: वह अमरता का पुत्र है फिर वह अपने अंदर मृत्यु का डर क्यों बिठा रहा है। आलस्य पूरी दुनिया का अभिशाप है जो व्यक्ति को सक्रिय जीवन रूपी अमृत से वंचित कर देता है।


अमरता-सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना॥


कवयित्री कहती हैं कि सफलता-असफलता जीवन के दो पहलू हैं। हर असफलता में सफलता छिपी होती है। एक बार असफल हो जाने पर निराश नहीं होना चाहिए। असफलता ही सफलता का सोपान है। देश को आज़ाद कराने के लिए उत्साह, जोश और उमंग की जरूरत है। असफलताओं के कारण ठंडी साँस में यह मत कहो कि उस जलती हुई संघर्ष की कहानी को भूल जाओ। कवयित्री देशभक्तों की निराशा में आशा का संचार करना चाहती है। हर हार के बाद हमें सोचना चाहिए कि हमारे प्रयत्न में कहाँ कमी रह गई। आँखों में आँसू तभी अच्छे लगते हैं जब हृदय में आग हो अर्थात अपना लक्ष्य सामने हो, उसे पाने की दृढ़-इच्छा शक्ति हो। असफल होने पर रोना भी आए तो अच्छा है क्योंकि उससे असफलता का मैल धुल जाता है। कवयित्री को पक्का विश्वास है कि वह दिन दूर नहीं जब हम अपने प्रयत्न में सफल होंगे। जिस तरह पतंगा एक क्षण में जलकर राख हो जाता है और दीपक अमर रहता है उसी तरह देशभक्तों का बलिदान ही आज़ादी के दीपक की अमर कहानी कहेगा। आज हमारे मन में जो देशभक्ति की आग है वही भारतवासियों के जीवन पथ को कोमल कलियों से भर देगी।


निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि आज भी देश कई तरह की कठिनाइयों से घिरा हुआ है। भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, गरीबी, धार्मिक असहिष्णुता, अनैतिकता आदि समस्याओं ने लगातार जीवन के हर मोर्चे पर असफलता का वातावरण तैयार किया है लेकिन हमें चाहिए कि हम अपने आत्मविश्वास, मेहनत, साहस, लोकतांत्रिक मूल्यों और एकाग्रता के बल पर देश की समस्याओं से जूझें तथा व्यर्थ के आकर्षणों से बचें। 

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