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नेता जी का चश्मा ::-- स्वयं प्रकाश

नेता जी का चश्मा  
स्वयं प्रकाश
(जन्म: 1947)
स्वयं प्रकाश आधुनिक हिन्दी साहित्य में एक प्रसिद्‌ध नाम है। स्वयं प्रकाश जी को प्रेमचंद परम्परा का महत्त्वपूर्ण लेखक माना जाता है। अब तक इनके पाँच उपन्यास और नौ कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी कहानियों का अनुवाद रूसी भाषा में भी हो चुका है।
स्वयं प्रकाश जी ने अपनी रचनाओं में मध्यमवर्गीय जीवन की समस्याओं, उनकी पीड़ाओं और उनके संघर्षों के विविध पक्षों को पाठकों के सम्मुख उपस्थित किया है।
इन्होंने अपनी खिलंदड़ी किन्तु अत्यंत सहज भाषा में रचनाएँ लिखकर अपने पाठकों का मन मोह लिया है।
इन्हें पहल सम्मान, वनमाला सम्मान, राजस्थान साहित्य अकादमी सम्मान तथा 2011 में आनंद सागर कथाक्रम सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।
प्रमुख रचनाएँ:  प्रतीक्षा, बलि, चौथा हादसा, जंगल का दाह, लाइलाज
सूरज कब निकलेगा, आएँगे अच्छे दिन आदि।

नेता जी का चश्मा हर भारतीय के अंदर देशभक्ति की भावना और अपने स्वतंत्रता-सेनानियों के प्रति सम्मान का भाव जागृत करने का प्रयास करती है।
प्रस्तुत कहानी के माध्यम से लेखक ने यह बताने की कोशिश की है कि जब हम अपने महापुरुषों की प्रतिमा की स्थापना करते हैं तब उसका उद्‌देश्य यह होता है कि उस महान व्यक्ति की स्मृति हमारे मन में बनी रहे। हमें यह स्मरण रहे कि उस महापुरुष ने देश व समाज के हित के लिए किस तरह के महान कार्य किये। उसके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर हम भी अच्छे कार्य करें, जिससे समाज व राष्ट्र का भला हो। 
हमारा यह उत्तरदायित्व होना चाहिए कि हम उस प्रतिमा की गरिमा का ध्यान रखें। हम न तो स्वयं उस प्रतिमा का अपमान करें अथवा उसे क्षति पहुँचाएँ और न ही दूसरों को ऐसा करने दें। हम उस प्रतिमा के प्रति पर्याप्त श्रद्‌धा प्रकट करें एवं उस महापुरुष के आदर्शों पर स्वयं भी चलें तथा दूसरे लोगों को भी चलने के लिए प्रेरित करें। 

कठिन शब्दार्थ

दरकार - जरूरी
निष्कर्ष - नतीज़ा
भूतपूर्व - पहले का
खुशमिज़ाज - खुश रहने वाला
कौतुक - हैरानी
प्रतिष्ठापित - स्थापित किया गया
मरियल - दुर्बल, कमज़ोर
कौतूहल - उत्सुकता
लागत - खर्च
पारदर्शी - जिसके आर-पार दिखाई दे
कत्था - खैर की छाल का सत जो पान में लगाया जाता है

अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर
(1)

क्या कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है या आज़ाद हिंद फ़ौज का भूतपूर्व सिपाही ?

प्रश्न


(i) प्रस्तुत पंक्ति कौन, किससे पूछ रहा है ?

(ii) वक्ता का परिचय दीजिए ।

(iii) श्रोता चश्मेवाले के लिए क्या टिप्पणी करता है ? श्रोता की टिप्पणी
       पर अपनी प्रतिक्रिया दीजिए।


(iv) सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे ?


उत्तर


(i) प्रस्तुत पंक्ति हालदार साहब पानवाले से पूछ रहे हैं।


(ii) हालदार साहब इस कहानी के मुख्य पात्र तथा सूत्रधार भी हैं जिनके माध्यम से यह कहानी आगे बढ़ती है। हालदार साहब किसी कंपनी के अधिकारी हैं। वे अत्यंत भावुक, संवेदनशील तथा देशभक्त व्यक्ति हैं। उन्हें कस्बे के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर स्थापित नेताजी की संगमरमर की प्रतिमा में गहरी दिलचस्पी है।


(iii) कैप्टन के बारे में हालदार साहब द्वारा पूछे जाने पर पानवाले ने टिप्पणी की कि वह लंगड़ा फ़ौज में क्या जाएगा, वह तो पागल है। पानवाले द्वारा ऐसी टिप्पणी करना उचित नहीं था। कैप्टन शारीरिक रूप से अक्षम था जिसके लिए वह फौज में नहीं जा सकता था। परंतु उसके हृदय में जो अपार देशभक्ति की भावना थी, वह किसी फौजी से कम नहीं थी। कैप्टन अपने कार्यों से जो असीम देशप्रेम प्रकट करता था उसी कारण पानवाला उसे पागल कहता था। ऐसा कहना पानवाले की स्वार्थपरता की भावना को दर्शाता है, जो सर्वथा अनुचित है।
वास्तव में तो पागलपन की हद तक देश के प्रति त्याग व समर्पण की भावना रखनेवाला व्यक्ति श्रद्‌धा का पात्र है, उपहास का नहीं। 


(iv) सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन इसलिए कहते थे क्योंकि उसके अंदर देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी हूई थी। वह स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले सेनानियों का भरपूर सम्मान करता था| वह नेताजी की प्रतिमा को बार-बार चश्मा पहना कर देश के प्रति अपनी अगाध श्रद्‌धा प्रकट करता था। देश के प्रति त्याग व समर्पण की भावना उसके हृदय में किसी भी फ़ौजी से कम नहीं थी।


(2)

बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-ज़िन्दगी सब कुछ होम कर देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है।

प्रश्न

(i) प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

(ii) कैप्टन की मृत्यु के बाद कस्बे में घुसने से पहले हालदार साहब के मन
      में क्या ख्याल आया ?

(iii) होम कर देनेवालों  का तात्पर्य स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि कौन
       किस पर हँसते हैं और क्यों ?

(iv) मूर्ति लगाने के क्या उद्‌देश्य होते हैं और आप अपने इलाके के चौराहे 
       पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे और क्यों ? अपने
       विचार व्यक्त करें।

उत्तर

(i) दो साल तक हालदार साहब कस्बे से गुज़रते और नेताजी की मूर्ति में बदलते हुए चश्मे को देखते लेकिन एक बार मूर्ति के चेहरे पर चश्मा नहीं था। जब उन्होंने पानवाले से इस संबंध में पूछा तब पानवाले ने उदास होकर बताया कि चश्मा बदलने वाला कैप्टन मर गया है। उपर्युक्त पंक्तियाँ इसी संदर्भ में प्रयुक्त हुई हैं।

(ii) पंद्रह दिन बाद जब हालदार साहब उसी कस्बे से गुज़रे तब उनके मन में ख्याल आया कि कस्बे की हृदयस्थली में सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा अवश्य होगी लेकिन उस प्रतिमा के चेहरे पर चश्मा नहीं होगा क्योंकि उस प्रतिमा को बनाने वाला मास्टर साहब चश्मा बनाना भूल गया है और देशभक्ति की भावना से भरा कैप्टन मर गया है जो प्रतिमा के चेहरे पर चश्मा पहनाया करता था।

(iii) होम कर देनेवालों  का तात्पर्य  है कुर्बान कर देने वालों।
 उस स्वार्थी और लालची कौम का भविष्य कैसा होगा जो उन देशभक्तों की हँसी उड़ाती है जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-ज़िंदगी सब कुछ त्याग कर देते हैं। साथ ही वह ऐसे अवसर तलाशती रहती है, जिसमें उसकी स्वार्थ की पूर्ति हो सके, चाहे उसके लिए उन्हें अपनी नैतिकता की भी तिलांजलि क्यों न देनी पड़े। अर्थात आज हमारे समाज में स्वार्थ पूर्ति के लिए अपना ईमान तक बेच दिया जाता है।  यहाँ देशभक्ति को मूर्खता समझा जाता है और देशभक्त को मूर्ख।
(iv) मूर्ति लगाने का प्रमुख उद्देश्य यह होता है कि उक्त महान व्यक्ति की स्मृति हमारे मन में बनी रहे। हमें यह स्मरण रहे कि उस महापुरुष ने देश व समाज के हित के लिए किस तरह के महान कार्य किये। उसके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर हम भी अच्छे कार्य करें, जिससे समाज व राष्ट्र का विकास हो सके।
हम अपने इलाके के चौराहे पर महात्मा गाँधी की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे। इसका कारण यह है कि आज के परिवेश में जिस प्रकार से हिंसा, झूठ, स्वार्थ, वैमनस्य, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार आदि बुराइयाँ व्याप्त होती जा रही हैं, उसमें गांधी जी के आदर्शों की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है। गांधीजी की मूर्ति स्थापित होने से लोगों के अंदर सत्य, अहिंसा, सदाचार, साम्प्रदायिक सौहार्द आदि की भावनाएं उत्पन्न होंगी। इससे समाज व देश का वातावरण अच्छा बनेगा।




source::--http://blog.hindijyan.com/ 

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