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चलना हमारा काम है ::-- शिवमंगल सिंह "सुमन"

                               चलना हमारा काम है

शिवमंगल सिंह "सुमन"
(जन्म-1916  मृत्यु- 2002)
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image credit:-amarujala

शिवमंगल सिंह 'सुमन का हिन्दी के शीर्ष कवियों में प्रमुख नाम है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नावजिले में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा भी वहीं हुई। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से बी॰ए॰ और काशीहिन्दू विश्वविद्यालय से एम॰ए॰ , डी॰लिट् की उपाधियाँ प्राप्त कर ग्वालियर, इन्दौर और उज्जैन में उन्होंने अध्यापन कार्य किया। वे विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति भी रहे।
उन्हें सन् 
1999 में भारत सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्‌मभूषण से सम्मानित किया था। '
सुमन' जी ने छात्र जीवन से ही काव्य रचना प्रारम्भ कर दी थी और वे लोकप्रिय हो चले थे। उन पर साम्यवाद का प्रभाव है, इसलिए वे वर्गहीन समाज की कामना करते हैं। पूँजीपति शोषण के प्रति उनके मन में तीव्र आक्रोश है। उनमें राष्ट्रीयता और देशप्रेम का स्वर भी मिलता है।
इनकी भाषा में तत्सम शब्दों के साथ-साथ अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों की भी प्रचुरता है।


 प्रमुख रचनाएँ - हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन, मिट्‌टी की बारात, विश्वास बढ़ता ही गया, पर आँखें नहीं भरी आदि।



कठिन शब्दार्थ

गति - रफ़्तार
विराम - आराम, विश्राम
पथिक - राही
अवरुद्‌ध - रुका हुआ
आठों याम - आठों पहर
विशद - विस्तृत
प्रवाह - बहाव
वाम - विरुद्‌ध
रोड़ा - रुकावट
अभिराम - सुखद

अवरतणों पर आधारित प्रश्नोत्तर

(1)
जीवन अपूर्ण लिए हुए,
पाता कभी, खोता कभी 
आशा-निराशा से घिरा
हँसता कभी रोता कभी।
गति-मति न हो अवरुद्‌ध, इसका ध्यान आठों याम है।
चलना हमारा काम है।
(i) कवि ने जीवन को अपूर्ण क्यों बताया है?
(ii) "आशा-निराशा से घिरा" से कवि का क्या तात्पर्य है?
(iii) कवि मनुष्य में आठों पहर किस भावना की कामना करते हैं? कवि के विचारों से आप कहाँ तक सहमत हैं?
(iv) यह किस प्रकार की कविता है? इस कविता से आपने क्या सीखा? चलना हमारा काम -पंक्ति को बार-बार दोहराकर कवि क्या संदेश देना चाहते हैं?
उत्तर
(i) कवि ने मानव जीवन को अपूर्ण बताया है क्योंकि मनुष्य को अपने जीवन में सब कुछ प्राप्त नहीं होता। मनुष्य की इच्छाएँ असीमित हैं। मनुष्य़ जीवन की यात्रा पर आगे बढ़ते हुए अपनी इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करता है परन्तु वह सब कुछ प्राप्त नहीं कर सकता। अत: कुछ खोना और कुछ पाना जीवन के अधूरेपन की निशानी है।
(ii) यह मानव स्वभाव का अहम हिस्सा है कि जब उसे जीवन में सफलता प्राप्त होती है तब उसका मन प्रसन्नता से भर उठता है किन्तु असफलता प्राप्त होने पर उसे घोर निराशा होती है। इस प्रकार मनुष्य अपने जीवन में आशा-निराशा के भाव से घिरा रहता है।
(iii) दिन के चौबीस घंटे को आठ पहर में बाँटा जाता है। प्रत्येक पहर में तीन घंटे होते हैं। कवि के अनुसार हमें दिन-रात कठिन परिश्रम करते रहना चाहिए। कवि की यह सोच बिल्कुल सही है कि  हमें एक पल के लिए भी निष्क्रिय नहीं होना चाहिए। बुद्‌धि की गति और सोच निरन्तर गतिशील रहनी चाहिए। यदि मनुष्य की गति रुक जाएगी  तो वह अपने लक्ष्य को भूलकर निष्क्रिय हो जाएगा। यह जड़ता का प्रतीक है।
(iv) शिवमंगल सिंह "सुमन"‍ द्‌‌वारा रचित कविता "चलना हमारा काम है" प्रेरणादायक कविता है जो निराशा में आशा का संचार करने वाली कविता है। प्रस्तुत कविता से हमने सीखा कि मानव जीवन सुख-दुख, सफलता-असफलता, आशा-निराशा के दो किनारों के बीच निरन्तर चलता रहता है और उसके इसी निरन्तर गतिशीलता में मानवता का विकास निहित है।
"चलना हमारा काम है" पंक्ति को बार-बार दोहराकर कवि ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि मानव जीवन को सदैव प्रयत्नशील और गतिशील रहना चाहिए तभी मानव समाज प्रगति के पथ पर अग्रसर हो पाएगा।

(2)
इस विशद विश्व-प्रवाह में
किसको नहीं बहना पड़ा
सुख-दुख हमारी ही तरह
किसको नहीं सहना पड़ा।
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ मुझ पर विधाता वाम है
चलना हमारा काम है।
(i) यहाँ कवि ने संसार की किस सच्चाई का उल्लेख किया है?
(ii)कविता के आधार पर बताइए कि कवि ने "बोझ" बाँटने का कौन-सा उपाय बताया है? समझाकर लिखिए।
(iii) "विधाता वाम" का अर्थ स्पष्ट कीजिए। ऐसा हम कब सोचते हैं और क्यों? स्पष्ट कीजिए।

(iv) कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर
(i) कवि कहते हैं कि संसार बहुत बड़ा है। यह संसार गतिशील है और सभी मानव इसकी गतिशीलता में प्रवाहित होते रहते हैं। इस संसार के जीवन में सुख और दुख समान गति से आते और जाते रहते हैं। दुनिया में ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसके जीवन में सुख और दुख न आया हो। सुख और दुख संसार की सच्चाई है।
(ii) कवि कहते हैं कि जीवन रूपी मार्ग पर चलते हुए अनेक राही मिलते हैं। उनसे अपने सुख-देख को बाँटने से मन का बोझ (भार) कम हो जाता है। दुख बाँटने से कम होता है और सुख बाँटने से बढ़ता है।
(iii) "विधाता वाम" का तात्पर्य है कि ईश्वर हमारे विरुद्‌ध है। कवि का कहना है सुख-दुख जीवन का अनिवार्य अंग है। संसार के हर व्यक्ति के जीवन में सुख और दुख दोनों विद्‍यमान  हैं लेकिन जब हमारे जीवन में दुख, कष्ट, पीड़ा, अवसाद और अकेलापन बढ़ जाता है तब हमें लगने लगता है कि हमारा भाग्य खराब है और ईश्वर भी हमारे विरुद्‌ध हो गए हैं।
(iv) प्रस्तुत कविता केन्द्रीय भाव यह है कि मानव को विघ्न-बाधाओं पर विजय प्राप्त करते हुए निरन्तर आगे बढते रहना चाहिए। गति ही जीवन है। जीवन में सफलता-असफलता, सुख-दुख आते रहते हैं। जीवन में हार-जीत लगी रहती है। अत: सभी परिस्थितियों में आत्मविश्वास बनाए रखते हुए जीवन में गतिशीलता बनाए रखनी चाहिए। जड़ता मानव विकास के लिए खतरनाक है। अत: हमें अपनी बुद्‌धि की गतिशीलता और रचनात्मकता को कायम रखनी चाहिए।






source::--http://blog.hindijyan.com/ 

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