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भेड़ें और भेड़िये ::-- हरिशंकर परसाई

भेड़ें और भेड़िये
हरिशंकर परसाई

(जन्म: 1922 - मृत्यु:1995)

हरिशंकर परसाई  हिंदी के प्रसिद्‌ध लेखक और व्यंग्यकार थे। उनका जन्म  होशंगाबादमध्य प्रदेश में हुआ था। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती है, जिनसे किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है।

परसाई जी की भाषा अत्यंत सहज होते हुए भी बात को तीखे अंदाज़ में कहने में समर्थ है।

प्रमुख रचनाएँ -

हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव,
रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल
इन्हें विकलांग "श्रद्‌धा का दौर" के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

जनतंत्र क्या है ?

जनतंत्र का मतलब होता है जनता द्वारा जनता का शासन ,जनतंत्र में सत्ता आम आदमी के हाथ में होती है , पर यहाँ तो जनतंत्र के मायने कुछ और ही बन कर रह गए हैं ! ये जो लोग सत्ता में बैठे हैं ये आम आदमी के सेवक हैं, इन्हें जो सम्मान, जो शक्ति दी गयी है  वह सिर्फ एक स्वस्थ व्यवस्था संचालन के लिए दी गयी है न कि आम आदमी का खून चूसने के लिए !


भारत में जनतंत्र या लोकतंत्र के चार स्तम्भ माने गए हैं -विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता जिनके द्‌वारा देश की शासन- व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है। जनतंत्र में राजनैतिक दलों की अहम भूमिका होती है क्योंकि चुनाव के बाद जिस राजनैतिक दल को पूर्ण बहुमत मिलता है, वह संसद में सरकार का गठन करता है और जनहित तथा जन-कल्याण के लिए नीति-कानून का निर्माण करता है।
जब सत्ताधारी वर्ग भ्रष्ट और बेईमान हो जाता है तब वह सिर्फ़ अपने हितों की रक्षा करता है एवं जन-कल्याण की भावना से विमुख हो जाता है।
यह स्थिति किसी भी राष्ट्र के लिए अत्यंत घातक और विध्वंसकारी साबित होती है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा और मज़बूत लोकतांत्रिक देश है किन्तु यहाँ की अशिक्षा लोकतांत्रिक शक्तियों को कमज़ोर बनाती है। अशिक्षा के कारण भ्रष्ट नेतागण आसानी से अपने चापलूस कवि-लेखक-पत्रकार और धर्मगुरुओं की सहायता से अपने पक्ष में जनमत तैयार करने में सफल हो जाते हैं और सत्ता पर सहजता से उनका नियंत्रण स्थापित हो जाता है।

कठिन शब्दार्थ
सहस्रों - हज़ारों
अवरुद्‌ध - रुका हुआ
क्षुद्र  - छोटा
प्रतिनिधि - नुमाइंदा
सर्वशक्तिमान - सब शक्तियों से युक्त
मुखारविंद - सुंदर मुख
कोरस - समूह गान
सर्वत्र - सब जगह
बंधुत्व - भाईचारा
अंत्येष्टि क्रिया - मृतक का अंतिम कर्म
भावातिरेक - भावों की अधिकता
अजायबघर - म्यूज़ियम, संग्रहालय
अर्पित करना - भेंट करना
फ़ीसदी - प्रतिशत
विचारक - चिन्तक
धर्मगुरु - धर्म की शिक्षा देने वाला
अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर

(1)

यह एक भेड़िये की कथा नहीं है, यह सब भेड़ियों की कथा है। सब जगह इस प्रकार प्रचार हो गया और भेड़ों को विश्वास हो गया कि भेड़िये से बड़ा उनका कोई हित-चिन्तक और हित-रक्षक नहीं है।

प्रश्न

(i) "यह सब भेड़ियों की कथा है" - इस कथन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

(ii) चुनाव के समय भेड़िये का प्रचार किसने  और किस प्रकार किया ?

(iii) भेड़ों को क्या विश्वास हो गया था और क्यों ? समझाकर लिखिए।

(iv) सियारों ने भेड़िये का प्रचार क्यों किया था?


उत्तर


(i) सब भेड़ियों की कथा से तात्पर्य है - सत्ताधारी भ्रष्ट शोषक वर्ग। शोषक वर्ग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए मिथ्या प्रचार करता है। शोषक वर्ग के आश्रय पर पलने वाला समाज का चापलूस और स्वार्थी वर्ग जिसका प्रतीक यहाँ सियार को बनाया गया है, उनके प्रचार में योगदान देता है और उनके पक्ष में जनमत तैयार करता है। चुनाव में भेड़ियों को सफलता मिलती है और फिर वे भेड़ रूपी समाज के भोले-भाले शोषित वर्गों का खुलकर शोषण करते हैं।

(ii) चुनाव के समय भेड़ियों का प्रचार सियारों ने किया। बूढ़े सियार और तीन  रंगे सियारों ने भेड़िये को संत बताकर उसकी झूठी प्रशंसा की थी और उनके पक्ष में जनमत तैयार किया था। पीले सियार ने कवि और लेखक की, नीले सियार ने पत्रकार की और हरे सियार ने धर्मगुरु की भूमिकाएँ निभाई थीं।


(iii) भेड़ों को यह विश्वास हो गया था कि भेड़िया अब संत बन गया है। वह शाकाहारी बन चुका है। उसका हृदय-परिवर्तन हो गया है। यदि भेड़िया चुनाव में जीता तो वह भेड़ों के हितों की रक्षा के लिए कार्य करेगा और उनके विजयी होने पर भेड़ निर्भय होकर जीवन बिता सकेंगी।
भेड़ें अत्यंत ही नेक, ईमानदार, कोमल, विनयी, दयालु और निर्दोष थीं और वे भ्रष्ट सियारों की बातों में आकर भेड़ियों को अपना शुभचिन्तक तथा हितरक्षक मानने लगी थीं।

(iv) सियार समाज के स्वार्थी और अवसरवादी भ्रष्ट चापलूस लोगों के प्रतीक हैं। ऐसे लोग शोषक वर्ग की दया पर पलते हैं और उनके हर अनैतिक और गलत कार्यों में उनका साथ देते हैं। बूढ़ा सियार भी भेड़िये द्‌वारा फेंकी गई हड्‌डियों को चूस-चूसकर खाता था। इन लोगों की स्वार्थपरता इन्हें मानवता-विरोधी बना देती है। भेड़िये के जीतने पर अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए ही सियारों ने चुनाव में उसका प्रचार किया था।


(2)
पशु-समाज में इस ’क्रांतिकारी’ परिवर्तन से हर्ष की लहर दौड़ गई कि सुख-समृद्‌धि और सुरक्षा का स्वर्ण-युग अब आया और वह आया।
प्रश्न

(i) पशु-समाज की खुशी का क्या कारण था ?

(ii) ’क्रांतिकारी’ से क्या तात्पर्य है ? यहाँ इस शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है ? समझाकर लिखिए।

(iii) चुनाव की घोषणा होते ही भेड़ियों ने क्या सोचा ? चुनाव के बाद भेड़ियों ने पंचायत में पहला कानून क्या बनाया  ?

(iv) प्रजातंत्र किसे कहते हैं ? भारतीय प्रजातंत्र में क्या खामियाँ हैं और इसका निवारण कैसे किया जा सकता है ? अपने शब्दों में उत्तर दीजिए।



उत्तर


(I) पशु समाज की खुशी का कारण यह था कि वन-प्रदेश में सभ्यता के विकास के उपरांत एक अच्छी शासन-व्यवस्था की स्थापना के लिए प्रजातांत्रिक सरकार के लिए चुनाव की आवश्यकता महसूस की गई।
(ii) ’क्रांतिकारी’ से तात्पर्य है - बदलाव लाने वाला। पशु-समाज ने अपने भविष्य को सँवारने के लिए तथा भय-मुक्त समाज का निर्माण करने के लिए वन-प्रदेश में अपने जन-प्रतिनिधियों को चुनने का निर्णय लिया।यह एक क्रांतिकारी परिवर्तन था जिससे पूरे वन-प्रदेश में खुशी की लहर चल पड़ी। भेड़ों ने सोचा कि अब उनका भय दूर हो जाएगा तथा शांति, बंधुत्व और सहयोग पर आधारित समाज की स्थापना हो पाएगी।
(iii) चुनाव की घोषणा होते ही भेड़ियों ने यह सोचा कि अब उनका संकटकाल आ गया है। वन-प्रदेश में भेड़ों की संख्या बहुत ज्यादा है इसलिए चुनाव के बाद पंचायत में उनका ही बहुमत होगा और वे अपने हि्तों की सुरक्षा के लिए कानून बनवाएँगे कि कोई पशु किसी को न मारे। ऐसी स्थिति में भेड़ियों को घास चरना सीखना पड़ेगा।
चुनाव के बाद पंचायत में भेड़िये प्रतिनिधि बनकर आए और उन्होंने भेड़ों के हितों की भलाई के लिए पहला कानून यह बनाया कि हर भेड़िये को सवेरे नाश्ते के लिए भेड़ का एक मुलायम बच्चा, दोपहर के भोजन में एक पूरी भेड़ और शाम को स्वास्थ्य के ख्याल से आधी भेड़ दी जाए।

(iv) प्रजातंत्र का मतलब होता है जनता द्वारा जनता का शासन ,प्रजातंत्र में सत्ता आम आदमी के हाथ में होती है क्योंकि जनता चुनाव के द्‌वारा अपने जन-प्रतिनिधियों को चुनकर संसद में भेजती है जहाँ वे सरकार का गठन करते हैं और जनहित के लिए कानूनों का निर्माण करते हैं।
पूरी दुनिया में प्रजातांत्रिक सरकार-व्यवस्था को ही सर्वोत्त्म माना गया है। भारत में भी प्रजातंत्र है लेकिन इसकी कुछ खामियाँ भी है जिसमें सबसे प्रथम है - अशिक्षा। भारत में शिक्षा की दर विश्व की तुलना में कम है जिसके कारण कुछ भ्रष्ट राजनीतिज्ञ अपने चापलूसों के प्रचार का सहारा लेकर अपने पक्ष में जनमत ( Public opinion) तैयार कर लेते हैं। ये नेतागण भोली-भाली मासूम जनता को झूठे स्वप्न दिखाकर उनका वोट प्राप्त कर लेते हैं और सरकार बनाकर सत्ता की ताकत का दुरुपयोग करते हैं।




source::--http://blog.hindijyan.com/ 

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