मजबूरी
:- मन्नू भंडारी
प्रश्न
"मजबूरी" दो पीढ़ियों
के अलगाव की मार्मिक कहानी है। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
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उत्तर
मन्नू भंडारी हिन्दी की सुप्रसिद्ध
लेखिका हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा भारतीय समाज की स्त्रियों को नई आवाज़
दी है।
उन्होंने एम.ए. तक शिक्षा
पाई और वर्षों तक दिल्ली के मिरांडा हाउस में अध्यापिका रहीं। धर्मयुग में धारावाहिक
रूप से प्रकाशित उपन्यास आपका बंटी से लोकप्रियता प्राप्त करने वाली मन्नू भंडारी विक्रम
विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रेमचंद
सृजनपीठ की अध्यक्षा भी रहीं। इन्हें हिन्दी अकादमी दिल्ली के शिखर सम्मान,
राजस्थान संगीत अकादमी के व्यास सम्मान आदि अनेक
पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
मन्नू भंडारी की भाषा संस्कृतनिष्ठ
मुहावरेदार हिन्दी है जिसमें तत्सम शब्दों की बाहुल्य है। भाषा पात्रानुकूल तथा प्रभावोत्पादक
है।इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं - एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की तस्वीर,
यही सच है, एक इंच मुस्कान, आपका बंटी, महाभोज, आदि मन्नू भंडारी
द्वारा लिखित कहानी "मजबूरी" अम्मा और उसकी बहू रमा के माध्यम से दो पीढ़ियों
के बाच के अंतर को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करता है। कहानी की कथावस्तु के केंद्र
में रमा का बेटा है जिसे अम्मा प्यार से बेटू पुकारती है। रमा दोबारा गर्भवती है और
वह दो बच्चों की देखभाल एक साथ करने में असमर्थ है। अत: वह अपने बड़े बेटे बेटू को उसकी
दादी के पास गाँव में छोड़कर बम्बई चली जाती है। एक वर्ष बाद जब वह दोबारा गाँव आती
है तो उसे बेटू का व्यवहार देखकर बहुर निराशा होती है। लेखिका के शब्दों में -
"जिस बेटू को वह छोड़
गई थी, और जिसे अब वह देख रही है,
दोनों में कोई सामंजस्य ही नहीं था। बात-बात में
उसकी ज़िद देखकर रमा का खून खौल जाता।" रमा अपने बेटे की यह स्थिति नहीं देख सकती
थी। वह दिन भर दादी के साथ रहता है और शाम को गली-मुहल्ले के गंदे-गंदे बच्चों के साथ
खेलता है। रमा का दूसरा बेटा पप्पू अब एक वर्ष का था। उसका मन था कि वह बेटू को अपने
साथ बम्बई ले जाकर उसका भविष्य सँवार दे परन्तु दोनों बच्चों को साथ रखना अभी सम्भव
नहीं था। रमा अम्मा से कहती भी है कि उन्होंने बेटू को बिगाड़कर धूल कर दिया है। लेकिन
अम्मा पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ा। रमा जिस बात से इतना परेशान थी, अम्मा के लिए वह एक सामान्य बात थी। उन्होंने कहा-"अरे
बचपन में कौन ज़िद नहीं करता, बहू! रामेश्वर भी
ऐसे की करता था। यह तो सच हूबहू उसी पर पड़ा है। समय आने पर सब अपने आप छूट जाएगा।"
रमा वापस बम्बई चली गई लेकिन वह बेटू के लिए बहुत परेशान थी। बेटू के चार साल के होने
पर रमा ने अम्मा से उसे गाँव के नर्सरी स्कूल में भर्ती करवाने को कहा जिसे अम्मा ने
टाल दिया। दरअसल, अम्मा उस पीढ़ी का
प्रतिनिधित्व कर रही थीं जहाँ बच्चा पहली बार स्कूल पाँच-छ: साल की उम्र में जाता है
लेकिन रमा नई पीढ़ी की थी, वह जानती थी कि बच्चों
का बौद्धिक विकास आठ-दस वर्ष तक हो जाता है। वह उस समय में जो ग्रहण कर लेता है वही
उसको आगे बढ़ाने में सहायक होता है।
दो वर्ष बाद जब रमा और रामेश्वर
बेटू से मिलने गाँव आए तब पप्पू तीन साल का हो गया था। पप्पू को अंग्रेज़ी की छोटी-छोटी
कविताएँ याद थीं किन्तु बेटू उम्र में बड़ा हो गया था पर उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन
नही आया। आखिरकार रमा बेटू को अपने साथ ले जाने का निर्णय करती है और अम्मा से कहती
है -"...यदि आप सचमुच ही इसे प्यार करती हैं और इसका भला चाहती हैं तो इसे मेरे
साथ भेज दीजिए, और इसके साथ दुश्मनी
निभानी है तो रखिए इसे अपने पास।" रमा की इस बात का अम्मा के मन पर गहरा प्रभाव
पड़ा। उन्होंने कहा -"मैं अनपढ़-गँवार औरत ठहरी, इसे लायक कहाँ से बनाऊँगी? तू इसे ले जा! चार दिन को मेरी ज़िन्दगी में हँसी-खुशी आ गई,
इसी में तेरा बड़ा जस मानूँगी।"
रमा बेटू को लेकर अपनी माँ
के घर चली आई लेकिन बेटू की तबीयत खराब होने पर अम्मा रात की गाड़ी से गई और बेटू को
वापस लेकर आ गई। एक साल इसी प्रकार निकल गया। रमा ने दूसरे साल आकर देखा कि बेटू के
रवैये में कोई परिवर्तन नहीं आया। इस बार वह बेटू को लेकर बम्बई चली आई। नौकर भी उसके
साथ गया था। पन्द्रह दिन के बाद नौकर ने लौटकर अम्मा को बताया कि बेटू खुश है। उसका
मन बम्बई में लग गया है। बुझे मन से लेकिन बाहर खुशी प्रकट करते हुए अम्मा ने सवा रुपए
का प्रसाद चढ़ाया। लेखिका ने दो पीढ़ियों के बीच की अलग-अलग सोच से उत्पन्न दर्द को कहानी
में उभारकर रख दिया है। अम्मा और रमा दोनों बेटू से बेहद प्यार करती हैं पर दोनों की
सोच में समय के अनुसार परिवर्तन आ गया है। लेखिका ने दादी माँ के चरित्र के माध्यम
से अनेक ऐसी नारियों के चरित्र को देखाने की कोशिश की है जो अकेलेपन और बुढ़ापे को झेलती
हैं और मजबूरीवश बदलते समाजिक मूल्यों के साथ समझौता करती हैं।