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सती



                      सती
                          :- शिवानी
प्रश्न
मदालसा का चरित्र-चित्रण करते हुए यह बताइए कि मदालसा किस प्रकार अपनी सहयात्री महिलाओं को अपनी ओर आकर्षित करके मूर्ख बनाने में सफल हो जाती है जबकि वे महिलाएँ भी आधुनिक युग के अनुरूप शिक्षित हैं? कहानी के उद्‌देश्य पर प्रकाश डालिए।

Gaura Pant 'Shivani' (1923 –2003) .jpg

उत्तर

शिवानी हिन्दी की एक प्रसिद्‌ध उपन्यासकार हैं। इनका वास्तविक नाम गौरा पन्त था किन्तु ये शिवानी नाम से लेखन करती थीं।इनकी शिक्षा शन्तिनिकेतन और कलकत्ता विश्वविद्‌यालय में हुई। साठ और सत्तर के दशक में, इनकी लिखी कहानियाँ और उपन्यास हिन्दी पाठकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हुए और आज भी लोग उन्हें बहुत चाव से पढ़ते हैं। लखनऊ से निकलने वाले पत्र ‘स्वतन्त्र भारत’ के लिए ‘शिवानी’ ने वर्षों तक एक चर्चित स्तम्भ ‘वातायन’ भी लिखा।
शिवानी की कहानियों में पर्वतीय समाज से संबंधित समस्याओं, प्रथाओ तथा मनोभावों का चित्रण हुआ है। इन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से संघर्ष करती हुई नारी को प्रस्तुत किया है।
इनकी भाषा में संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का प्रयोग किया गया है।
1982 में शिवानी जी को भारत सरकार द्वारा पद्‌मश्री से अलंकृत किया गया।
इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं -विष कन्या, करिए छिमा, लालहवेली, अपराधिनी, चार दिन आदि (कहानी संग्रह)
चौदह फेरे, श्मशान चम्पा, भैरवी, कैंजा, कृष्णकली, मायापुरी,आकाश आदि (उपन्यास)
शिवानी द्‌वारा रचित ’सती’ कहानी में नारी के अनेक रूप दिखाए गए हैं। पढ़ी-लिखी शिक्षित नारियाँ भी मूल रूप से भावुक होती हैं और भावुकता के बहाव में बहकर अनजान स्त्री की बातों पर जल्दी विश्वास कर लेती हैं और ठगी जाती हैं। प्रयाग के रेलवे स्टेशन पर चार महिलाओं के नाम रिज़र्वेशन स्लिप में थे। जिनमें से तीन पहले आकर बैठ जाती हैं। एक महाराष्ट्री, दूसरी पंजाबी, तीसरी लेखिका स्वयं थी, चौथी अभी आई नहीं थी। ट्रेन में महाराष्ट्री और पंजाबी, दोनों महिलाएँ भारी-भरकम सामानों के साथ लदी थी। महाराष्ट्री महिला अपना सामान तरतीब से लगाकर एक मराठी पत्रिका पढ़ने में व्यस्त थी। दूसरी पंजाबी महिला का सारा सामान बिखरा था। उसने अपना परिचय दिया कि वह विस्थापित स्त्रियों के लिए बनाए गए आश्रम की संचालिका है और अभी विदेश से लौटी है। वह किसी सामाजिक गोष्ठी में भाग लेने लखनऊ जा रही है। दोनों महिलाएँ उच्चवर्गीय समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं। दोनों अपने अहम भाव में डूबकर दूसरों से अत्यंत औपचारिकपूर्ण व्यवहार करती हैं। गाड़ी जैसे ही चलने लगती है कि चौथी महिला का डिब्बे में प्रवेश होता है। छूटती हुई गाड़ी में हाँफती हुई, सामान के साथ चढ़ने वाली चौथी महिला यात्री का नाम मदालसा था। जिसका डिब्बे में प्रवेश मात्र बाकी महिला सहयात्रियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए काफ़ी था। अपने भारी भरकम प्रभावशाली व्यक्तित्व, छह फुट साढ़े दस इंच लम्बे कद का एहसास उसने स्वयं घुसते ही "केम बेन, बहुत लम्बी हूँ न मैं" कहकर करा दिया था। उसकी भाषा से स्पष्ट हो गया कि वह एक गुजराती महिला थी। वाचाल मदालसा ने डिब्बे में घुसते ही अन्य महिलाओं का परिचय लेना प्रारम्भ कर दिया। समाज सेविका ने बड़े रूखे मन से एक दो प्रश्नों के उत्तर दिए भी परन्तु महाराष्ट्री महिला ने तो भाषा न समझने का बहाना बनाकर छुटकारा पा लिया। परन्तु मदालसा हार मानने वालों में से नहीं थी। उसने शुद्‌ध अंग्रेजी में अपना परिचय देते हुए बता दिया कि वह मदालसा सिंघाड़िया है और कल ही प्रिटोरिया से अपने पति का शव लेने आई है जो पिछले वर्ष एक पर्वतारोही दल के साथ भारत आए थे, वही एक एवलैंस (तूफान) के नीचे दबकर मारे गए। मदालसा ने यह कहकर सबका ध्यान व सहानुभूति अर्जित कर ली।
अपनी सहयात्री मदालसा के प्रति उपेक्षित व्यवहार रखने वाली महाराष्ट्री व पंजाबी महिला उसके पति की मृत्यु की दुखद घटना सुनकर द्रवित हो जाती हैं तथा भावविभोर हो उसकी मदद करने पर उतारू हो जाती है। नारी हृदय कितना कोमल व सहिष्णु होता है कि उसे परिवर्तित होने में देर नहीं लगती। परन्तु मदालसा में उसका विरोधाभास देखने में आता है। वह वाक्‌पटु नारी अपनी सहयात्री महिलाओं को अपने कपट-जाल में फँसाने के लिए भूमिका बाँधती है। अपने पति के साथ सती होने का अपना दृढ़ निश्चय सुनाकर सबकी सहानुभूति प्राप्त करती है। वह सती होने को अपने खानदान की परम्परा मानते हुए अपने सहयात्री महिलाओं की सहानुभूति बटोरने के लिए कहती है - "मेरी परनानी तो राजा राममोहन राय और सर विलियम बैंटिंक को भी घिस्सा देकर सती हो गई थीं।"
मदालसा में वैधव्य का कोई चिह्‌न नहीं था बल्कि वह लम्बी, सुदृढ़, स्वस्थ व गठीले बदन की अधेड़ महिला लग रही थी जिसमें स्वभाव की उत्तमता थी। सैलून के कटे सँवरे बालों के साथ-साथ उसके व्यवहार में भी एक अल्हड़पन था। मदालसा एक अच्छी अभिनेत्री व नारी मनोविज्ञान से अवगत थी। पूछने पर कि क्या वह अपने पति के शव को लेकर वापस जाएगी, उसने बताया कि वह अपने पति के साथ सती होने जारी है। वह अपने उद्‌देश्य में सफल हो जाती है और महिला सहयात्रियों को अपने भोजन में कुछ नशीला पदार्थ मिलाकर खिला देती है। नशे के कारण वे सभी गहरी नींद में सो जाती हैं। मदालसा उनका सारा माल लेकर अगले स्टेशन पर उतर जाती है। वह एक ऐसी स्त्री है जिसने छल-फरेब का सहारा लेकर समाज के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व किया है जो मानव के सद्‌गुणों का फायदा उठाकर उनके साथ विश्वासघात करता है।
शिवानी द्‌वारा रचित कहानी ’सती’ एक व्यंग्यात्मक कहानी है। इसमें लेखिका ने महिला यात्रियों के व्यवहार व चरित्र को दर्शाया है कि किस प्रकार पढ़ी-लिखी उच्चवर्गीय महिलाएँ अपने अहंभाव के कारण दूसरों से दूरी बनाए रखती हैं किन्तु शीघ्र ही अपने स्त्रियोचित व्यवहार का परिचय देते हुए अनजान लोगों से न सिर्फ़ बातें बल्कि उनपर पूर्ण भरोसा भी करने लगती हैं और ठगी का शिकार बनती हैं। स्त्रियाँ अत्यंत भावुक होती हैं। भावुकता मानव का गुण है न कि दुर्गुण लेकिन हमें अपने आसपास की परिस्थितियों का भी सही अनुमान होना चाहिए और उसी के अनुरूप हमें व्यवहार भी करना चाहिए और किसी भी स्थिति में तर्कशक्ति और व्यावहारिक ज्ञान का परित्याग नहीं करना चाहिए।

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