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शरणागत



                    शरणागत
                          :- वृंदावनलाल वर्मा
प्रश्न
"बुंदेला शरणागत के साथ घात नहीं करता" - पंक्ति के आधार पर कहानी की समीक्षा कीजिए।

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उत्तर
वृंदावनलाल वर्मा  हिन्दी के नाटककार तथा उपन्यासकार थे। हिन्दी उपन्यास के विकास में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। वे प्रेमचंद-परम्परा के लेखक हैं। इतिहास, कला, पुरातत्व, मनोविज्ञान, मूर्तिकला और चित्रकला में भी इनकी विशेष रुचि रही। उन्होंने अधिकांश रचनाएँ ऐतिहासिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर लिखी हैं।  'अपनी कहानी' में आपने अपने संघर्षमय जीवन की गाथा कही है। बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्होंने कानून की पढ़ाई की और झाँसी में वकालत करने लगे। 1909 ई० में 'सेनापति ऊदल' नामक नाटक छपा जिसे तत्कालीन सरकार ने जब्त कर लिया।
 भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्‌मभूषण से अलंकृत किया गया। इनकी भाषा अत्यंत सहज तथा पात्रानुकूल है जिसमें आंचलिक शब्दों का प्रयोग किया गया है।
प्रमुख रचनाएँ - लगन, संगम, प्रत्यागत, मृगनयनी, दबे पाँव, मेढ़क का
                        ब्याह, अम्बपुर के अमर वीर, अँगूठी का दान, शरणागत
                        आदि।
बुंदेलखंड के रहने वाले राजपूत बुंदेला कहलाते हैं। बुंदेला वीर जाति है। उसके अपने जीवन मूल्य हैं जिन्हें प्राण रहते वे पूरी ईमानदारी से निभाते हैं। उनमें से एक है - शरणागत की रक्षा। ठाकुर बुंदेला था। वह मड़पुरा का एक  ठाकुर था जिसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनके पास थोड़ी-सी जमीन थी जिसको किसान जोतते थे। उसका अपना हल-बैल कुछ नहीं था। वह अपने किसानों से दो-तीन साल का पेशगी लगान सरलता से वसुल कर लेता था। उसके छोटे से मकान को भी गाँववाले आदरपूर्वक गढ़ी कहकर पुकारते थे। ठाकुर को डर के मारे राजा शब्द से संबोधित करते थे।
 रज्जब एक कसाई था जो अपना व्यापार करके ललितपुर लौट रहा था। उसकी पत्नी को ज्वर आ गया था और साथ में दो-तीन सौ की बड़ी रकम थी। उसने मड़पुरा में ठहर जाने का निश्चय किया। मड़पुरा हिन्दुओं का गढ़ था। किसी ने उस मुसलमान को रात भर का आश्रय नहीं दिया। तब वह ठाकुर के द्‌वार पर पहुँचा। जब उसने अपना वास्तविक परिचय ठाकुर साहब को बताया तब ठाकुर की आँखों में खून उतर आया। उसने कड़ककर कह - "जानता है, यह किसका घर है? यहाँ तक आने की हिम्मत कैसे की तूने?"
रज्जब ने आशा भरे स्वर में कहा - "यह राजा का घर है। इसलिए शरण में आया हूँ।" ठाकुर समझ गया कि कसाई होने के कारण किसी ने उसे शरण नहीं दी है। ठाकुर ने उसे अपने यहाँ ड्योढ़ी पर एक रात व्यतीत करने की आज्ञा दे दी किन्तु इस हिदायत के साथ कि वह सवेरे जल्दी चला जाएगा। दोनों पति-पत्नी सो गए। काफ़ी रात बीत जाने पर कुछ लोगों ने इशारे से ठाकुर को बुलाया। आगन्तुकों में से एक ने कहा - "दाऊजू! आज तो खाली हाथ लौटे हैं। कल संध्या का सगुन बैठा है।" आगन्तुक ने ठाकुर को बताया कि एक कसाई रुपए की मोट बाँधे उसी ओर आया है। किन्तु वे ज़रा देर से पहुँचे और वह खिसक गया।
दरअसल ठाकुर साहब लुटेरों के एक समूह के सरदार थे जो रात के समय मालदार राहगीरों को लूटा करते थे।
ठाकुर जानता था कि वह कसाई और कोई नहीं बल्कि रज्जब ही है। रज्जब उसकी शरण में आया हुआ है। शरण में आए व्यक्ति की रक्षा करना बुंदेला का कर्त्तव्य है। वह अपने साथियों को रज्जब की सूचना नहीं देता है। वह अपने साथियों का मन बदलने के लिए उनसे कहता है कि वह कसाई का पैसा न छुएगा क्योंकि वह बुरी कमाई है। परन्तु उसके साथी उसकी बातों से सहमत नहीं होते हैं। ठाकुर ने अपने साथियों को वापस भेज दिया। सवेरे ठाकुर ने देखा कि रज्जब नहीं गया। पत्नी की तबीयत ठीक नहीं थी। ठाकुर ने रज्जब को तुरन्त वहाँ से चले जाने का हुक्म दिया। रज्जब गाँव के बाहर एक पेड़ के नीचे अपनी पत्नी के पास बैठा हिन्दुओं को मन ही मन में कोस रहा था।
रज्जब ने एक गाड़ी किराए पर ली। रज्जब की पत्नी की तबीयत ज़्यादा बिगड़ गई। गाड़ीवान ने रज्जब से अधिक पैसों की माँग की जिसे रज्जब को मानना पड़ा। यात्रा करते हुए साँझ हो गई। गाँव दूर था। कुछ दूर जाने पर तीन चार लोगों ने बैलों का रास्ता रो लिया। उन लोगों ने लट्‌ठ दिखा कर कहा - " खबरदार, जो आगे बढ़ा।"
गाड़ीवान गाड़ी छोड़कर खड़ा हो गया और कह दिया कि यह ललितपुर का एक कसाई है। रज्जब ने भी कहा कि वह बहुत गरीब है और उसकी औरत बहुत बीमार है। लाठीवाले आदमी (ठाकुर) ने कहा, "इसका नाम रज्जब है। छोड़ो, चलो यहाँ से।" किन्तु दूसरे लाठीवाले ने कहा कि वह कसाई-वसाई कुछ नहीं मानता और रज्जब ने पैसे नहीं दिए तो वह उसकी खोपड़ी फोड़ देगा। ठाकुर ने उसे डाँट्कर कहा - "खबरदार, जो उसे छुआ। नीचे उतरो, नहीं तो तुम्हारा सिर चूर किए देता हूँ। वह (रज्जब) मेरी शरण में आया था।" फिर ठाकुर ने गाड़ीवान को गाड़ी हाँकने का हुक्म देते हुए उसे हिदायत दी कि रज्जब को सही-सलामत उसके ठिकाने तक पहुँचा देना।

इस प्रकार यह स्पष्ट होता कि बुन्देलवासी प्राणों की बाजी लगाकर भी शरणागत की रक्षा करता है। उस दिन ठाकुर को पैसों की जरूरत थी पर उन्होंने अपने धर्म का पालन किया और अपने द्‌वार पर आए शरणार्थी की रक्षा की।

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