प्रश्न :- प्रभा का चरित्र चित्रण करें ?
उत्तर :- 'सारा आकाश' श्री राजेन्द्र यादव जी कि रचना है। इस उपन्यास को 1951 में 'प्रेत बोलतें हैं 'के नाम से प्रकाशित किया था । पर इसे कुछ सुधारों के बाद 1959 में इसे फिर से प्रकाशित किया ,जो राजेन्द्र जी मे लिए एक बड़ी सफलता साबित हुआ।राजेन्द्र यादव जी एक उपन्यासकार , कहानीकार , लेखक , कवि एवं अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध हुए। इन्होंने प्रेमचंद जी द्वारा संपादित 'हंस' पत्रिका का पुनःप्रकाशन 1985 में किया जो 1956 में बंद जो गई थी। राजेन्द्र जी का जन्म 28 अगस्त 1929 में आगरा में हुआ था । इन्होंने 1951 में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए हिन्दी प्रथम श्रेणी से उत्र्तीण कि । राजेन्द्र जी का निधन 28 अक्टूबर 2013 में हुआ । 'एक इंच मुस्कान','उखरे हुए लोग','अनदेखे अनजाने पुल' आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
लेखक श्री राजेन्द्र यादव जी ने अपने उपन्यास सारा आकाश में 'प्रभा' नामक पात्र गढ़कर नई युग की पढ़ी लिखी महिला के व्यतित्व को प्रगट किया है । वह समर की पत्नी है। उसे घर में आने के बाद से ही मानसिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है। राजेन्द्र जी ने प्रभा के माध्यम से उन महिलाओं के हालात को दर्शया है जो बिना दहेज के ब्याही जाती हैं। राजेन्द्र जी नई कहानी युग के महान लेखको में से हैं। उन्होंने इस उपन्यास को एक मध्यवर्गीय परिवार की विचारधारा ,समस्याओं को मूल बनाकर गढ़ा है।उन्होंने दिखाया है की भरतीय मध्यवर्ग किन समस्याओं से जूझ रहा है।
राजेन्द्र जी ने प्रभा को शुरुआत से ही रहस्यमयी किरदार के रूप में गढ़ा है। वह समर की नज़र में घमंडी और हठी है। भाभी के नज़र में रूप की रानी,कोई काम ढंग से न करने वाली तथा अपनी पढ़ाई लिखाई का घमंड करने वाली है। प्रभा ससुराल में आने के बाद से बहुत कम बोलती है।वह एक सरल और छल कपट रहित महिला है।वह एक आदर्श पत्नी की तरह अपने पति की राह की रोड़ा बनने से कतराती है ,जिस वजह से समर उसे घमंडी समझता है ।
जैसा व्यवहार प्रभा के साथ हुआ वैसा ही व्यवहार बहुओं के साथ समाज में होता है। प्रभा ने जैसे उस व्यवहार की सहा उससे उसके शांत और धैर्र स्वभाव का पता चलता है। प्रभा अपने पति की मनोस्थिति समझती थी इसिलए कभी अपने पति का विरोध नहीं किया।
उत्तर :- प्रस्तुत किरदार ‘शिरीष’
सारा आकाश उपन्यास से लिया गया है |‘सारा आकाश’ उपन्यास
जैसा व्यवहार प्रभा के साथ हुआ वैसा ही व्यवहार बहुओं के साथ समाज में होता है। प्रभा ने जैसे उस व्यवहार की सहा उससे उसके शांत और धैर्र स्वभाव का पता चलता है। प्रभा अपने पति की मनोस्थिति समझती थी इसिलए कभी अपने पति का विरोध नहीं किया।
सारा आकाश
लेखक :- राजेंद्र
यादव
प्रश्न :- संयुक्त परिवार के बारे में शिरीष भाईसाहब के क्या विचार हैं ?
उपन्यास के आधार पर स्पस्ट करें |
की रचना श्री राजेंद्र
यादव जी ने की है | राजेंद्र यादव जी का जन्म 28 अगस्त सन् १९२९ में आगरा में हुआ
था | वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | वे संपादक, अनुवादक, कहानीकार एवं उपन्यासकार के रूप में प्रशिद्ध हुए |
‘सारा आकाश’ का प्रकाशन सन् 1959 में हुआ था | इस उपन्यास की रचना राजेंद्र यादव जी ने 1951 में ‘प्रेत बोलते हैं’ के नाम से लिखा था | राजेंद्र जी ने आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. हिंदी प्रथम श्रेणी से उत्तरिन की | ‘एक इंच मुस्कान’ ‘उखड़े हुए लोग’’अनदेखे - अनजाने पुल’ ‘जहाँ लक्ष्मी कैद है’ आदि इनके कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं| राजेंद्र जी का स्वर्गवास २८ अक्टूबर २०१३ को हुआ|शिरीष भाई साहब समां के मित्र दिवाकर के बड़े भाई हैं | वे आधुनिक सोच वाले इंसान हैं | वे हर चीज ,हर घटना ,हर एक कार्य को एक अलग ही दृष्टी से देखते हैं | शिरीष आधुनिक दृष्टि वाले हैं | वह तार्किक सोच वाले हैं | वह भगवान को नहीं मानता है | वह ईश्वर , धर्म ,अंतरात्मा और संस्कारों को नहीं मानते |
‘सारा आकाश’ का प्रकाशन सन् 1959 में हुआ था | इस उपन्यास की रचना राजेंद्र यादव जी ने 1951 में ‘प्रेत बोलते हैं’ के नाम से लिखा था | राजेंद्र जी ने आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. हिंदी प्रथम श्रेणी से उत्तरिन की | ‘एक इंच मुस्कान’ ‘उखड़े हुए लोग’’अनदेखे - अनजाने पुल’ ‘जहाँ लक्ष्मी कैद है’ आदि इनके कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं| राजेंद्र जी का स्वर्गवास २८ अक्टूबर २०१३ को हुआ|शिरीष भाई साहब समां के मित्र दिवाकर के बड़े भाई हैं | वे आधुनिक सोच वाले इंसान हैं | वे हर चीज ,हर घटना ,हर एक कार्य को एक अलग ही दृष्टी से देखते हैं | शिरीष आधुनिक दृष्टि वाले हैं | वह तार्किक सोच वाले हैं | वह भगवान को नहीं मानता है | वह ईश्वर , धर्म ,अंतरात्मा और संस्कारों को नहीं मानते |
वे एक बार बोलते हैं ‘ ईश्वर , धर्म , अंतरात्मा और संस्कार के बाद जो भी
कुछ
बाकी बच जाता है मैं उस सबको मानता हूँ |
इसी प्रकार वे संयुक्त परिवार को भी अलग दृष्टिकोण से देखते हैं | शिरीष
संयुक्त परिवार को एक बंधन मानते हैं | शिरीष भाई साहब संयुक्त परिवार को व्यक्ति
के विकाश में बाधक मानते हैं |वह समर को सलाह देते हैं की अगर आप खुद और अपनी
पत्नी जिन्दा रखना चाहते हैं तो आपको अलग रखना होगा | वह कहते हैं की यह संयुक्त परिवार आपकी और आपकी
पत्नी की अकांछाओं का गला घोंट रहा है | एक के बाद एक मुसीबतें निकलती आएँगी और आप
लोग शायद सुख की नींद के सपनों में ही जिन्दगी बिता देंगे | आर्थिक दृष्टि से भी
संयुक्त परिवार का समर्थन नहीं किया जा सकता | अगर चलेगा भी तो ऊपर से देखने में
चाहे जो भी हो लेकिन
अन्दर उसमे छोटे -
अन्दर उसमे छोटे -
छोटे परिवारों की कई इकाईयां बन जाती है | संयुक्त परिवार में रहने
वाले लोग हमेशा परेशान
रहते हैं| सारा समय या तो समस्याओं को बनाने में उन्हें
सुलझाने में जाता है | लड़ाई – झगडा ,
खीचतान , बदल . ग्लानी ,सब – मिलकर वातावरण
ऐसा विषैला और दम – घोंटू बना रहता है की
आप सांस भी नहीं ले सकते |
संयुक्त परिवार में लोग हमेशा दो हिस्सों में बटें रहते हैं |बहार आपनी आर्थिक
लड़ाई लड़ी और भीतर घर के समस्याएँ सुलझाओ | सीधे और सरल दिमाग का व्यक्ति इन
झंझातों में पिस जाता है|
सारा आकाश
लेखक :- राजेंद्र
यादव
प्रश्न :- कथा नायिका प्रभा का चरित्र चित्रण करें |
उत्तर :- प्रस्तुत पात्र ‘सारा आकाश’ उपन्यस से लिया गया है | ‘सारा आकाश’ उपन्यास के लेखक श्री राजेंद्र यादव जी
हैं | राजेंद्र यादव जी का जन्म २८ अगस्त सन् १९२९ को आगरा में हुआ था | वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | वे संपादक, अनुवादक, कहानीकार एवं उपन्यासकार के रूप में प्रशिद्ध हुए |
‘सारा आकाश’ का प्रकाशन सन् 1959 में हुआ था | इस उपन्यास की रचना राजेंद्र यादव जी ने 1951 में ‘प्रेत बोलते हैं’ के नाम से लिखा था | राजेंद्र जी ने आगरा विश्वविद्यालय
से एम.ए. हिंदी प्रथम श्रेणी से उत्तरिन की | ‘एक इंच मुस्कान’ ‘उखड़े हुए लोग’ ’अनदेखे
- अनजाने पुल’ ‘जहाँ लक्ष्मी कैद है’ आदि इनके कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं| राजेंद्र यादव जी का जीवनकाल 84वर्षों का रहा | राजेंद्र जी का स्वर्गवास २८
अक्टूबर २०१३ को हुआ |
लेखक श्री राजेंद्र यादव जी ‘प्रभा’ पत्र के माध्यम से नये युग की पढ़ी लिखी महिला के व्यक्तित्वा को प्रगट किया
है | प्रभा ‘सारा आकाश’ उपन्यास की नायिका है और इस उपन्यास के प्रधान पात्र समर
की पत्नी है | ‘प्रभा’ के माध्यम से राजेंद्र जी ने महिलाओं पर होने
वाली घरेलू हिंसा और मानसिक उत्पीड़न को दर्शाया है |
राजेंद्र जी ने प्रभा को शुरुआत से ही रहस्यमयी किरदार के रूप में गढ़ा है | वह
हमें शुरुआत से ही कम बोलती सी दिखाई देती है | वह एक सरल अम्हिला है , और छल -
कपट रहित है | वह एक आदर्श पत्नी की तरह हमेशा समर का साथ देती है | प्रभा
अंधविश्वासों को नहीं मानती है और इसी वजह से हमेशा घर वालों के आखों में खटकती है
|
प्रभा के अंदर अजब सी सहनशीलता और धैर्य है |वह तमाम तानों और आरोपों को
चुपचाप सहती है | वह एक बुद्धिमान और हिम्मती महिला है | वह अपना पख अपने घर वालों
के सामने सही ढंग से नहीं रखती है | वह तब तक सहन करती रहती है जब तक उसके चरित्र
पर सवाल नहीं उठाया गया | प्रभा पर्दा प्रथा के खिलाफ है और बड़े – बूढों के सामने
पर्दा नहीं करती है | हम सब इस उपन्यास में देखते हैं की प्रथा की सोच उपन्यास के
अंत में अन्धविश्वास के खिलाफ थी , वह अब अंत में उसे मानने लगती है और समर के लिए
व्रत रखती है |
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