राजेंद्र यादव जी निम्नमध्यवर्गीय और मध्यवर्गीय परिवार में होने वाली समस्याओं , आचार -विचार आदि को दर्शाने के लिए 'सारा आकाश ' उपन्यास की रचना की थी | राजेंद्र यादव जी ने अपने उपन्यास में इस विषय पर गहरा विश्लेषण किया है |
इस उपन्यास में मुन्नी का सास द्वारा उत्पीडन किया जाता है | हमें यह भी देखने को मिलता है की समर को उसकी भाभी बहका रही हैं, उसे प्रभा को दबा कर रखने की सलाह देती है , जबकि वे स्वयं एक स्त्री हैं |
हमें प्रायः उपन्यास में पुरुष प्रभा के खिलाफ नहीं है ,समर को छोड़कर | समर भी पूर्वानुमान लगाकर प्रभा के खिलाफ है ,फिर भी उसके मन में अपनी पत्नी के प्रति संवेदना है |
हम इस उपन्यास में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं की स्त्रियाँ ही परवारिक कलह की स्स्रोत हैं | जैसा की उपन्यास में अंकित की भाभी समर को उकसा रही है ताकि वह प्रभा से न बोले , उसे दबाकर रखे |वह समर को अपने बड़े भैया की बहु का किस्सा सुनकर उसे भी वैसा करने को प्रेरित करती है |
"हमारे बड़े भैया किन बहु भी ऐसे ही ई थी | किसी को अपने सामने बदती ही नहीं थी | सो भैया को यह सब कहाँ बर्दाश्त | दो दिन men सारा नज़ला झाड दिया | वो तो किसी सीसी की आदत होवे है लालाजी , बिन पिटे कूटे ठीक रस्ते पर नहीं चले | भैया की भौं पर बल देखा नहीं की पत्ते की तरह कांप जावें "|
वह अपने देवर को अच्छाई की जगह बुरे के प्रति प्रेरित कर रही है|
हम अक्सर ही देखते हैं की घरों में सास बहु के और ननद भाभी में झगडे होते है |स्त्रियाँ ही घर बनती हैं या बिगडती हैं | वही घर घर बार चलाती हैं और जब उनमे मतभेद और आपसी तालमेल न हो तो घर में अशांति और अव्यवस्था फैल जाती है |
राजेंद्र यादव जी ने भाभी और मुन्नी की सास को आगे रखकर यह दिखने का प्रयास किया है कीं स्त्रियाँ ही पारिवारिक समस्याओं की केंद्र में हैं|
हमें प्रायः उपन्यास में पुरुष प्रभा के खिलाफ नहीं है ,समर को छोड़कर | समर भी पूर्वानुमान लगाकर प्रभा के खिलाफ है ,फिर भी उसके मन में अपनी पत्नी के प्रति संवेदना है |
हम इस उपन्यास में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं की स्त्रियाँ ही परवारिक कलह की स्स्रोत हैं | जैसा की उपन्यास में अंकित की भाभी समर को उकसा रही है ताकि वह प्रभा से न बोले , उसे दबाकर रखे |वह समर को अपने बड़े भैया की बहु का किस्सा सुनकर उसे भी वैसा करने को प्रेरित करती है |
"हमारे बड़े भैया किन बहु भी ऐसे ही ई थी | किसी को अपने सामने बदती ही नहीं थी | सो भैया को यह सब कहाँ बर्दाश्त | दो दिन men सारा नज़ला झाड दिया | वो तो किसी सीसी की आदत होवे है लालाजी , बिन पिटे कूटे ठीक रस्ते पर नहीं चले | भैया की भौं पर बल देखा नहीं की पत्ते की तरह कांप जावें "|
वह अपने देवर को अच्छाई की जगह बुरे के प्रति प्रेरित कर रही है|
हम अक्सर ही देखते हैं की घरों में सास बहु के और ननद भाभी में झगडे होते है |स्त्रियाँ ही घर बनती हैं या बिगडती हैं | वही घर घर बार चलाती हैं और जब उनमे मतभेद और आपसी तालमेल न हो तो घर में अशांति और अव्यवस्था फैल जाती है |
राजेंद्र यादव जी ने भाभी और मुन्नी की सास को आगे रखकर यह दिखने का प्रयास किया है कीं स्त्रियाँ ही पारिवारिक समस्याओं की केंद्र में हैं|
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